थारु साहित्य

चारठो मुक्तक

निरंकुश राजतन्त्रहे बगाके आइल लोकतन्त्र शोषण ओ दमनहे भगाके आइल लोकतन्त्र अरे देश खउइया नेतौ आब खेल्वारे नसम्झो, नारा लगाके जनतन् जगाके आइल लोकतन्त्र।

थारूवान

आर के स्वागत थारून्के बर्का तिउहार माघ कहिया हो ना, मिति हेरी माघहे लावा साल मन्ना थारू जातिन्के नीति हेरी

थारूवान

बतास्या भैया भैया रै भैया हेर ट माघ आइटा डोनी भर सुरीक सिकार ओ टाट्टुल ढिक्री बिल्गाइटा!! लहाके आपन से गोट्रान सबके घर छिरब आपन आजा पुर्खन्के आशीष संगारके ढरब!!

थारूवान

योगेश चौधरी ‘राज’ जुटल फुटल करम हन सोझ्याइक लाग उठाइक पर्ना सोझ बन्हो कठो मलिक्वा छान्डेउ बरा कर्ना–कर्ना!!

थारूवान

प्रसादु थारू, हम्र कहिया कली उ भूमि हमार केल हो। हम्र कहिया कली उ जल, जंगल हमार केल हो। हम्र कहिया कली थरुहट हमार केल हो। हम्र कहिया कली संघीयता, स्वायत्तता हमार केल हो।

थारूवान

मैइ मैया कर्ख तु महिन घायल बनिलो । बिच दग्रीम छोर्ख तु महिन पागल बनिलो ॥ तुहिन आपन सोच्ख देनु दिल कर्नु मैया । तु चाहिँ मोर मैयान आपन घिर्ना बनिलो ॥

थारूवान

मोर मैयाँ छोर्ख जइना निष्ठुरीहे बधाई । महिसे नाता तोर्ख जइना निष्ठुरीहे बधाई ॥ मैयाँके नाटक खेल्टि नेङग्ना तु निष्ठुरी। मोर भावना खेल्ख जइना निष्ठुरीहे बधाई ॥

थारूवान

सियाराम चौधरी- फुलपरी, हावाके झोका जेखा एकेछनमे राजविराज एकेछनमे लहान ने भुखप्यास कहैछै ने लागैछै ओकरा थकान। कखनो डेख्बै हाटबजारमे कखनो डेख्बै जाइट गाम कखनो डेख्बै अफिस कचहरी दौरते डेख्बै सुवह साम अखैन ओकरा सवकोइ कहैछै रेडियो सखीवाली दिन राइत करैछै काम।। हरजगह पुग्ले रहट हरदम काममे जुटले रहट...

थारूवान

निशा चौधरी- मोकमसे तिक्खर नजर मारल यी जोन्ह्या आपन मैगर मैयाके घेरम पारल यी जोन्ह्या पैल्ह मिठ मिठ बात करक मैया जालम फँसाक आज आक बिच डगरीम बात घुमाईल यी जोन्ह्या सड्ड सड्ड चहाजब्ब पकरक हाँठ सँग सँग कत्रा बन्वा कत्रा खोल्वा कटाइल यी जोन्ह्या देखाउ टुँ सपना रमाउँ...

थारूवान

श्यामल– टाटुल हावक् बहाउसे फर्फराइठ् हारल देशक् झण्डाहस् दसनीक् लँहगा। ढेर चोट सह सेकल ढेर रकट बहा सेकल ढेर बलात्कार खप सेकल जिमडरवक् पर्टी खेट्वम ढेर कुल्वा लगा सेकल घामपानीक् मारले जत्रा मलिन बिल्गैलेसे फेन अभिन रङ्गीन बटिस हजारौं फूला फुल्ना फुलरियाहस दसनीक् लँहगा।

थारूवान