थारु साहित्य
चारठो मुक्तक
निरंकुश राजतन्त्रहे बगाके आइल लोकतन्त्र शोषण ओ दमनहे भगाके आइल लोकतन्त्र अरे देश खउइया नेतौ आब खेल्वारे नसम्झो, नारा लगाके जनतन् जगाके आइल लोकतन्त्र।
थारूवानसियाराम चौधरी- फुलपरी, हावाके झोका जेखा एकेछनमे राजविराज एकेछनमे लहान ने भुखप्यास कहैछै ने लागैछै ओकरा थकान। कखनो डेख्बै हाटबजारमे कखनो डेख्बै जाइट गाम कखनो डेख्बै अफिस कचहरी दौरते डेख्बै सुवह साम अखैन ओकरा सवकोइ कहैछै रेडियो सखीवाली दिन राइत करैछै काम।। हरजगह पुग्ले रहट हरदम काममे जुटले रहट...
थारूवान
रेशम रन्जितालाई खुला पत्र