कविता : आन्दोलन चर्कैइना जरूरी बा…
जब दिनसँगे
हुजाई अन्धार तब
दियाके
जगमगैइना
जरूरी बा…
जब प्यारके
बाट हुई लागी
बजारमे, तब
प्रेमी ओ प्रेमिका
हे बचैइना
जरूरी बा…
जब देशमे खतरा
हुई गड्डारिन से
तब गड्डारिन
यी थरूहट भूमिसे
मेटैइना
जरूरी बा…
जब चिमचाम हुइती
रहही युवा यी देश
के, तब ओइनहे
सही ड़गर
देखैइना
जरूरी बा…
जब सक्कु ओर फैइल
गैइल निराशा
देशमे, तब
क्रान्तिके बिगुल
जगैइना
जरूरी बा…
जब नारी हुक्रे खुड़के
एक्केहेली पैही
तब ओइनहे यी समाजमे
आघे करैइना
जरूरी बा…
जब नेतनके हातमे
सुरक्षित नैरही
देश, तब फेन
लावा किरण हमहन
मगैइना
जरूरी बा…
जब हमार माग
सिधा तरिकासे
नै मिली तब फेनसे
आन्दोलन
चर्कैइना
जरूरी बा…
विरेन्द्र चौधरी जलन
हालः मुम्बई
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