रानी सरङ्गा

– सागर कुश्मी
पुरान जबानक् बात हो । एकठो बहुत भारी लडिया रहे । ऊ लडियक् किनारे एकठो बहुत भारी रुखवा रहे । ओहे रुखवामे एक जोरी बन्द्रा ओ बँदिन्याँ बैठिंट | ओइनके घरडुवार कलक् ओहे रुखवा रहिन ।

एक दिनके बात हो । एकठो बरा बुह्राइल मनैंयाँ नेंगट घुमट आहे रुखवाठन् आपुगठ । ऊ मनैंयाँ महा सिहरल रहठ । ऊ सोंचठ एकघरी अठ्ठहन रुखवक् छाहींम् बिसालिउँ । मुन्टी घुमैटी उप्परओर हेरठ तब रुखवक् डॅरियम् डेखठ बन्द्रा ओ दिन्याँहे बैठल । तब ऊ मनैंया बन्द्रा ओ बँदिन्याँहे कहठ- जे यी लडिया नाँघके ओहपार जाईसेकी ऊ मनैंक जलम पाई । यी बात सुनके ओहे बन्द्रा ओ बँदियाँ सल्लाह कठै । हम्रे यी लडिया नाँघके मनैंक जलम पाबी कलेसे हमार मजा होजाइ । कुछ काम करके खाइ सेक्ना होजैबी । अत्रा कहटी दुनुजाने लडिया घना निर्नय ले ।

तब दुनुजाने संगे लडियम् कुदजैहैं । लडियम् जुन यी डिउँसे उ डिउँ पूरा भरल बार्ह रहठ | ठिक बिच लडियम् पुग्ठै कि बुह्रे मुए लग्लैं । नाँघे नैसेक्के दुनुजाने घुम जैठें | दोसर दिन फेन बन्द्रा ओ बँदिन्याँ सल्लाह कठै कि आज यी लडिया जैसिक फेन नाँघे परी । तब दुनुजाने लडिया नाँघे चलदेहैं । बँदिन्याँ भर जैसिक टैसिक बुह्नेउह्ने मुके लड़िया नाँघ जाइट् । बन्द्रा भर नाँघे नै सेक्के घुम जाइठ् । ऊ मनैंक जलम पाइ नै सेकठ । बँदिन्याँ जुन मनैंक जलम पालेहठ । भर्खरिक् जवान बठिन्याँ महा सुग्घुर होजाइठ् ।

विचारी बँदियाँ (बठिन्याँ) का करी ? बल्ल मनैक जलम पाकेफें घर ना घाटके होजाइठ । दिनभर अक्केली लडियक् ढिकुवम् बैठल दिन बिटाइठ । साँझ होगैल रहे । वन्वम्से गयर्वन भैंसर्वन गोरु भैंस लेले घरेओर आइ लग्ौं । ओइने लडियक् ढिकुवम् पुग्दैँ ते, ऊ बँदिन्याँहे दुसर-टुसर रुइट देख्लैं । तब सक्कु गयर्वन भैंसर्वन गाँउमे जाके रज्वक्ठन बटा देहैं ।

तबजाके रज्वा अपन सिपाहिनहे लेहे पठाइठ् । रज्वा अपन घर लानके उहिसे एकदिन मजासे भोजकाज करके अपन रानी बना लेहठ । ओहोरजुन बन्द्रा कर्कहवन् पकरके लैजिहैं । बन्द्रा गाउँ गाउँ नचाके भिख माँगे लग् । बन्द्रा अक्को नाचे नैजानठ । विचरा बन्द्रा काकरी । पिट्वा पाकेफें नाचे परठिस् । बन्द्रा नाचत नाचत डट्कर जाइठ । उट्के मारफें पाइठ । ऊ रुइठ ओ भिख माँगठ ।

एक दिन भिख माँगत माँगत रज्वक् दरबार पुग्जैठें। तब छटके उप्परसे रानी डेखट ते बन्द्राहे मोर ठर्वा हो कहिके चिन्ह लेहठ् । तब रानी तरे उटरके बन्द्राहे कहठ-
तब ते कहुँ बन्द्रा जलमे ठिक बा । बन्द्रा मन पस्टाइल । गलामे लागल बा रेसमके डोरी, उपरेसे कल्कर्हवनके लठ ।
बन्द्रा जुन ढरढर ढरढर आँस गिराइठ ओ नाचे लागठ । ओम्हें कल्कर्हवन जुन खोब पिट्ठिस् । ऐसिक पिट्वा पाइट देखके रानीहे महा सोग लग्ठिस् । तब रानी ऊ बन्द्राहे माँगे लागठ । कल्कर्हवन जुन बन्द्रा अक्को देहक मन नैकठैं।

रानी अपन सेक्नासम् चिरोरी, बिन्ति करठ । कल्कर्हवन बन्द्राहे देहक मन नै कठै । तब रानी रज्वासे बन्द्रा मगा मागठ । रज्वा कहठ – ओइनसे बन्द्रा माँगके तै का करबे ? रानी कहठ- कुछु नै करलेसेफें मगादेउ ना । रानीक् बात काटे नैसेक्के रज्वा बन्द्रा माँगे चलदेहठ । कल्कर्हवन जुन बन्द्रा नचाइट – नचाइट बरा दुर पुग्गैल ररौं । रज्वा कल्कर्हवनठन् जाके बन्द्रा माँगे लागठ । कल्कर्हवन कठै – हमार घर ना दुवार । जग्गा ना जमिन हमार पेट पल्ना, हाँठगोर जोर्ना यहे बन्द्रा किलते बा । यिहि दैडेब ते हम्रे अपन जिउ कैसिक पालब महाराज ?

यी बात सुनके रज्वा फेन कहठ- यी बन्द्रा मोर रानीहे दैडेउ, यकर सत्तामे बैठक लाग घर, खेती पाती करक् लाग जग्गा, हर जोटक् लाग् गोंइ डाँगर सब चिज मै देहम । रज्वक् बात काटे नै सेक्के कल्कर्हवन ऊ बन्द्रा रानीहे दैडेहैं । रानी ओ रज्वा फोहैटी बन्द्रा लेके घरेओर चलदेहैं ।

रानी अपन पहिल ठर्वा बन्द्रा हुइल ओरसे रज्वासे ढेर मैंयाँ बन्द्राहे करठ । रानी रज्वक् खाइल खाना कुक्राहे डारठ ओ बन्द्रक् खाइल खाना अप्ने खाइठ | अइसिक खाइट देख्के रज्वक् नोक्रहुवन नैमजा लग्ठीन् । रोज दिन रानीक् ओहे चाल देख्के रज्वक् नोक्रहुवन एक दिन रज्वक्ठन् बटाडेहैं ।

रज्वाहे यी बात सुनके नैमजा लग्ठिस् । रानीहे गर्याइ लागठ । यी बन्द्रा तोर के हो ? एकर डुठाहा खैबे तब टोर पेट भरी ? यी बात सुनके रानीहे महा रिस लग्ठिस् । रिस पचाइ नैसेक्के ऊ बन्द्राहे उठाके पटक देहठ । बन्द्रा ओट्ठेहे मर जाइठ । अप्ने ओट्ठेहे आत्महत्या करलेहठ् ।

कुछ समयक् बाद दुनु जाने मनैक रुपमे जलम लेहैं । बन्द्रा राजा पृथके जन्नीक कोखमे गर्भ रहठ । रानी जुन औरे रानीक् पेटमे गर्भ रहठ । राजा पृथके छावा जर्मठिस । ओकर नाउँ छेदाबृख रठिस । औरे रानीक् छाइ जर्मठिस ओ ओकर नाउँ रानी सरङ्गा रठिस । दिन, महिना बरस बिटठ । कुछ बरस बाद ओइने सयान होजिहैं । स्कुल जैना होजैहैं । दुनु जाने संगे स्कुल जाइ लग्ठैं । दुई जहनके जोरी एकदम मिलल रठिन । जहाँ गैलेसे फेन संगे जैना, संगे घुम्ना कठै।

छेदाबृस ओ रानी सरङ्गा जस्तक बह्नटी जैठें, ओस्तक दुनहुनके सम्बन्ध लग्गे हुइटी जैठिन । एकठो कहाइ बा- जे आइठ लग्गे ओहे हुइठ संग्गे । ओइने दुनुजाने डौना बेब फुला हसू फुलके मगमग मगमग महके लग्ठैं । दुनु जाने एक दोसरके जवानीसे हिरोल्ना भुले लहैं ।

जब ओइने दुनुजाने स्कुल जैठें, दिनभर चलिकचला करके दिन कठैठें। दुनु जहनके पहना लिखना कुछ मतलब नैरठिन । स्कुलमे मस्तरुवनफें ओइनहे देखके हैरान होजैठँ । राजनके लर्का हुइलक ओरसे ओइनहे कोइफें कुछ कहे नै सेकठ्।

ओइनके चाल देख्के मस्तरुवन कक्षा कोठाके बिचमे डेवाल उठाके लौंडा लर्का अलग ओ लौंडी लर्का अलग कैके कोठा छुट्या देहैं । तबमारे कठै कि चोरनके जीउ डलामल । दुनुजाने दुनु पाँजरसे सोझीक सोझा डेवालटिर बैठे लग् । ओइने पह्नही का पह्नही । पह्नक छोरके दुनु पा“ जरसे चक्कु लेके डोंडर पारक टन डेवाल खोले करदे सुरु
दिनभर खोलट-खोलट डोंडर यहपारसे ओहपार छिरा दौं । स्कुलमे दिनभर कागत ज्यात्या लिखके चलिकचला कठै । असिक करट देखके मस्तरुवनकेफें कौनो उपाय नै रहिजैठिन् ।
एकदिन मस्तरुवन सल्लाह कठै कि छेदावृख ओ रानी संरगा यी स्कुलसे पास होगैलैं कहिके स्कुलसे निकार देहैं। रानी संरंगा जवान बठिन्याँ हुइलक ओरसे घर मनै भोजक लाग बात करे लग्ठैं । ठकौनी फेन खा दहैं ।
समयफें बिट्टी जाइठ । धिरेधिरे भोजक् दिनफें आजैठिन । ओहोर छेदावृष जुन अपन बनाइक टन सोंचटी रहठ । भोजक दिनफें आजाइठ । भोज सुरु होजाइठ । बरातर्फे आजाइठ । बरात बैठाके सब काम करके रानी संरगाहे फेन दुलही बनाके पठाडेरौं। ओहोर जुन छेदावृषहे बरा कर्रा परजैठिस् ।

छेदावृष का करी विचरा । ऊ फें अपन घोरुवक् पर चहुँरट ओ चलडेहठ । जाइट् जाइट् डगरीम् बरात भेटा लेहठ । बरात भेटाइठ ते घनी डोलीक् आधे घ डोलीक् पाछे घोरुवाहे नेंगाइ लागठ । तब फेन कौनो उपाय नै लग्ठिस् । गाना गैटी कहठ-
तोरे घोरीला मोरे घोरिला एकेरे उमरिया, मोरे घोरीला दिलके छोटा जी, मोरे घोरिला जे दस हाँठ फाँडट लेटु, हौडासे निकारो जी ।
छेदाबृख ठठाइट अपन घोरुवा डोलीक् उप्परसे चिठ्ठी जकाके आधे चल्डेहठ घोरुवा डौरैटी । ऊ चिठ्ठीमे लिखल रहठ-
प्रिय रानी सरङ्गा, धेर मैंया ।
मै आघे जाके झोंपरीमे साधु बनके बैठल रहम । ओहैं महिन भेंट करहो । मै डरल के बसुँ । निदाइफें सेकम । जैसिक फेन जगहो ।
टोंहार हृदयके राजकुमार छेदावृख ।

छेदाबृख जुन ना खाना खैले रहठ, ना सुट्ले रहठ । कै कै दिनिक भुखासल, पियासल डुपहरक् घाम लेके डट्कर जाइठ । जाइट जाइट एकठो कुट्नी बुह्रियक् घर पुगठ् । ऊ कुट्नी बुहियक् घर पुगठ ते बुहियाहे कहठ- बुडी पानी पिवा महिन, महाँ पियास लागटा । तब बुढिया पानी देहट । उहिले बरा डट्करल देख्के बुढ़िया एक टाँरा खुझी काट्के लानट । सबसे पहिले जरे ओरिक् गिन्डा खाइक् डेहठ । ऊ खुझी खाके फेन सेकडारठ । तब बुढ़िया पुछठ- नतिया कैसिन बा खुझी ? बुडी महाँ मिठ बा खुझी, छेदावृख जवाफ देहठ ।

फेन कुट्नी बुढ़िया बिच्का गिन्डा खाइक् देहठ । ऊ फेन खा डारठ। फेन कुट्नी बुह्निया पुछठ- अपखरिक् गिन्डा कैसिन बा नतिया ? छेदाबृख कहठ- अप्खर ओत्रा मिठ नै हो । टनिक पहिलेक लेके नोन्खल्ला बा ।
कुट्नी बुढ़िया फेन तिसर गिन्डा खाइक डेहठ । ऊ फेन खाइठ् । तब कुट्नी बुढ़िया पुछठ – अप्खरीक कैसिन लागल ते नतिया ?
छेदाबृख कहठ- अप्खर ते और अक्को मिठे नै लागल । खाइल नै खाइल बराबर । बुडी पेट नै भरल और डे खाइक लाग कहठ् ।
यी काहो ते चिबा बा, यिहेखाले कुट्नी बुढ़िया कहठ । फकाइल चिबा केउ खाइ ? मै नै खैम ? मै का सुवर हुँ । छेदावृख जवाफ देहल ।

हेर नतिया कुट्नी बुह्रिया सम्झेटी कहल – हाँ बुडु पहिले जरगिन्डा खैले ते बरा मिठ रहे । ओस्टक तोर ओ रानी सरंग सम्बन्ध महाँ लस्गर रहे । तब बिच्का गिन्डा खैले ठोरठोर फिक्कल रहे । तोहरे खोब जवान हुइलो ते टुहिनके सम्बन्धफें ढिरेढिरे फिक्कल हुइ लागल ।

तब पोंकी खैले ते एक्को नैमिठ लागल | ओस्तेक रानी सरङ्गाके मंगनी होगैलिस् ते तुहिनके सम्बन्धफें फिक्कल होगैल । तुहिनके भेटघाट नैहुइ लागल । जब चिबा खाइ कनु ते, तैं कले फकाइल चिज कहुँ खैम ? ओम्ने ते रस फेन नैरहठ । हाँ, ओस्तेक रानीहेफें बना सेक्लैं । आब ते ओहे फेकाइल चिबा सरह होगैल बाती ।

ओकरपाछे लागके कौनो उपाय नै हो । ओस्तेक भुखे पियास अत्रा दुःख करके का पैबे ? आप जौन हुइना होगैल । अट्ठेसे अपन घर घुम जा नतिया ।
मने छेकाबृख कुट्नी बुद्धियक बात नैमानके जाइ लागठ । तब कुट्नी बुद्धिया कहठ- (अपन पालल सुगुवा डेटी) ले नतिया यी सुगुवा लैजा । संग्गे कहुँ डग्गरघाटमे साठ दी ।
तब छेकाबृख सुगुवा लेके चल देहठ । जाइट जाइट मिच्छा जाइठ । तब सुनसान बनुवाँमे बिच डगरिम झोंपरी बनाके जोगिया बनके गाजाँ भाँग पिके दुवारीम सोफे सुगुवाहे टँगाइठ । सुगुवाहे कहठ- कोइ आइ ते महिन जगाइस् । ओत्रा कहिके सुट्जाइठ।

कैंयो दिनके भुखाइल पियासल गाँजक् मट्वार । बरा डटके निनमे डुबजाइठ । ठिक्के ओहोरसे बरातर्फे पुग जाइठ । तब रानी सरङ्गा अपन डोलबोकुवनहे डोली ढारे कहठ । झोंपरी भिट्टर पेलके छेदावृषहे जगाइ लागठ ।
रानी सरङ्गा छेदाबृखहे जगाइट – जगाइट मिच्छा जाइठ । टबफेन छेदावृष नैजागठ | रानी सरगा अपन सेकटसम एकसे एक उपाय लगा लगा जगाइठ | तबुफे ऊ नैजागठ | कौनो उपाय नै लागके ऊ ओकर दुनु हाँठमे जम्मा बात लिखके ओहाँसे निकरठ । सुगुवाहे कहठ-

हरियार पंखी सारी सुगुना काल कटाके स्वामी मोर जगही बटयाना कहो जी । तब सुगुवा जवाफ देहठ तैं ते महिहे अपन देवरुवा हस् नैमन्ले । मै नै बटैम । महिनहे देवरुवा कोह तब बटैम । तब फेन रानी सरङ्गा कहठ-
हरियर पंखी रे सारी रे सुगुना तुं ते हुइतो सग्गे मोर देवर जी । काल कटाके स्वामी मोर जगही बट्याना कहो समझाए जी ।

तब सुगुवा फेन कहठ- हाँ बटादेम । रानी सरङ्गाफें चलदेहठ । बलटल छेदाबृख भुरेभुरसुन जागठ । डग्गर दुरिया दुर्खुन डेखठ । बरात गैल देखके महारिस लग्ठिस । रिस नै ठाम्हें सेक्के सुगुवाहे गर्यैटी कहठ-
तैं फेन नै बटैले ? सुगुवक दुनु गोर पकरट ओ पटके लागठ कि ओकर हाँठेमसे सुगुवा निपुच्के भुरसे उर जाइठ । रुखुवक उप्परसे सुगुवा जवाफ देहठ- मैं बटाइक लाग ते रहुँ । तैं एकफाले मारे लग्ले । मै फें तुहिनसे कबु ना कबु जरुर बड्ला लेम । सुगुवा ओहाँसे चल डेहठ । फेन छेदावृष अक्केली रहि जाइठ ।

छेदाबृख अपन डगर लागठ । ऊ जाइट जाइट एकठो लडियामे पुगठ । ऊ बरा पियासल रहठ । पानी पिए जाइ लागठ ते अपन हाँठेम जम्मा कहानी लिखल डेखठ । ऊ मेटके पानी पिए लागठ | ओकर टिकरा सरङगक् दिदी लुग्गा धोइटिहिस् । ओकर दिदी छेकावृषहे देखठ चिन्ह लेहठ । उही हे ओइनके बारेमे जम्मा पत्ता रठिस । तब पानी पियट देख्के ऊ कहठ-

ना मै देखेँ आँखके अंढरा रे,
ना मै देखेँ हवा जुलरी जी, यिहे ते कहे छैला छैलीसे भुलल,
मुह भुमका पानी पियट जी ।
तब उही बरा लाज लगठिस । ऊ बहना बनाई लागठ ।
ना मै हुइटुं आँखके अन्धरा रे, ना मै हुइटु हाँठके लुल जी । मै ते हुइटुं गारीके चलुइया, हॉठमे लगी मसियानी जी ।
अत्रा कहिके छेदाबृख चल देहठ । जाइट जाइट जौन सहरमे रानी सरंगाके सस्रार रठिन् ओहे सहर पुगजाइठ । तब ओके बगियामे कुट्टी बनाके बैठ जाइठ । दिनभर भिख मागके खाइठ | कबु भुखले सुतठ् ते कबु पियसले ।
एकदिन भिख मागट मागट रानी सरङ्गाके दरबार पुगजाइठ । तब रानी सरंगाहे देखठ । रानी सरङ्गा पुछ-
कहाँ बैठठो ? तब छेकाबूख कहठ्
तोहाँरै बगियामे बैठठु।

एकदिन रानी सरङ्गाके बगिया घुमे जाइठ ते दुनुजाने सल्लाह करहैं । तँ सवा मारके मोर पठरिम ढार देहो । तब छेदावृष एकदिन डोमिनियाँ सपुवा मारके रातके रानी सरङ्गक् पठरिम ढार आइठ । रानी सरङ्गा ओहे रातसे साँस बन्द कैके मुवलहस हुजाइठ । तब रज्वा देखठ पठरिम डोमिनियाँ सपुवा ओ सरगाहे मुवल । ओहे सपुवा कटले हुइ कहिके गुरुवा बैडवा खोजे लागठ । जत्रा गुरुवा बैडवा रहिंत् कोइफें विस झारे नैसेक्लै राजा सहरमे डुग्गी पिटाइ लागठ । जत्रा गुरुवा रहिंट सारा जहन बलाके ऊ काम करे लगाइल । कोइफें कुछ करे नैसेक्लैं । तब गरुवन कहलैं- आब अन्तिम एक्केठो उपाय बा । यी बगियामे एकठो जोगिया आके बैठल बा । जाउ बलाइ । सेकी ते ओहे सेकी नै ते कोइ नैसेकी ।
छेकाबृखहे बलाके नन्हेँ । ऊ आइठ ओ भिट्टर हेरे जाइठ । चब छेकाबृख कहठ- सक्कुजे यी घरमन्से निकर जाउ ।तब सक्कुजे राजक घरेम् (दरबार) से निकर जैठें । ऊ भिट्टर पेठ ।

एकठो कहाइ बा ‘ढुंगा खोजेबेर भगवान मिल्ठँ’ । कैयौ दिनिक भुखासल, पियासल छेदाबृख अपन मन परल परी भेटाइ ते का खोजी । बिस झरना ते बहना किल रहठ् ।
छेदाबृख अपन भोगलार सुइ निकारठ ओ रानी सरंगकमे लगाइ लागठ । पचपच पचपच सुइ भिट्टर पेलाइठ । एक घचिक रहिके रानीक होस् आजैठिन् । रानीक होस आगिलिन् कहिके छेदाबृख चल डेहठ । ओठेहेसे ओइने मजासे बैठे लग्गेँ । कुछ दिनकेबाद फें दुनु जाने सल्लाह करदैं | छेदाबृख फेन दोसर सँपुवा मारके रानी सरंगक् पठरिम ढार आइठ । रानी सरङगा फेन साँस बन्द कैके सुतजैठी । तबफें सकारे राजा देखठ । पठरिमे संपुवा ओ रानी सरगाहे बेहोस हुइल । रजुवा फेन गुरुवा बैडवा खोजे लागठ । सहर भर डुग्गी पिठाइठ जम्मा गुरु जुटाइठ । सब गुरुवन विष भारट भारट मिच्छा जैठें। कोइ नै झारे सेक्हेँ । अन्तिममे कौनो उपाय नैलागके ओहे जोगियाहे बोलाके नन्हेँ । तब दुनुजाने पहिलेक् नन्हे कामकाज ओरुवाके जोगिया बाहर निकरजाइ । रानी सरङ्गा नैजिना सल्लाह फें करहैं । तब छेदाबृष आब मै जिवाइ नै सेकम कहिके दरवारसे चलदेहठ | रानी सरङ्गा मरगैल कहिके ओकर दाहसंस्कार कर्ना सुरु करे लग्ौं । जौन बगियामे छेदावृख कुट्टी बनाके बैठल रहठ । ओहे बगियामे रानी सरंगक् लास जराइ जैठँ । ठिक्के ओकर लास जराइ जाइ लग्लैं ते छेदाबृख देख लेहठ ।

तब चिम्टा लेले रखेदे लागठ । ओ कहठ- जहाँ साधुके धुनी जरटा ओहाँ मुर्दा जरैना कहिके सक्कुहुन रखेडे लागठ । तब आगी लगाइ छोरके सक्कु जाने अपन अपन घर भाग जैठें।
छेदाबृख यहोर ओहोर मनैन चिटाइठ । किहु नै देखठ । रानी सरङगक् हाँठ पकरके उठाइठ । ओहाँसे दुनु जाने भाग जैठें। भागट भागट दुनुजाने बरा दुर घनघोर बनुवाँमे पुगजैठँ। ओहाँ पुगत् पुगत् रात होजैठिन । रातभर रुखुवा तरे सुहेँ ।
रुखुवक उप्परसे सुगुवा देख लेहठ । सुगुवा आपन पुरान नैबिस्रैले रहठ । तब ऊ बदला लेहक लाग उप्परसे आम गिराइठ । भोक्से बोलठ ते मनै आगनै कहिके दुनु जाने झरफराके उठके भागे लग्गेँ । फेर दोसर रुखुवा तरे सुते जैठाँ । थोर थोर निदाइल हस कर ते फेन ओइनके पन्जरे आम गिरठ । फेन कोइ आगिनै कहिके दुनु जाने भागे लग्गेँ । ओस्तेक करट करट ओइनके रात बिट जैठिन । दुनुजाने अक्को सुते नैपैठँ । ओजरार हुइठ ते फेन ओइने भागे लग्गेँ । भागट भागट बरा दूर पुगजैठें। कै कै दिनक निदासल, भुखासल, पियासल छेदाबृख डटकर जाइठ । तब ऊ रानी सरगाहे कहठ –
अत्रा दुर कोइ नै आइ आब । एकघची बिसाली ।

रानी सरङ्गा बैठल रठी । ओकर जांघ सिहरन लेके छेदावृख सुत्जाइठ । डटकरल जिउ ऊ अक्के घची निदाजाइठ । ठिक्के छेदावृख निदाइठ, ठिक्के ओकर बाबा भौरानन हॉथिक पर बैठके सिकार खेलठ खेलठ ओहैं पुगजाइठ । तब देखठ रानी सरङ्गाहे । अत्रा सुग्गर रानी सरङ्गाहे देखके मन परजैठिस । छेदावृषके लाग कठुवक् सिहरन धारठ। रानी सरंगाहे हँथियक पर बैठाके लेके चलदेहठ । छेदावृख जुन कहियक देखल जम्मा डाही मोछ पाकल । मोर छावा हो कहिके नैचिन्हठ् । रानी सरङ्गाहे लैजाइ लग्ठिस ते काकरु काकरु कहिके छेदावृखहे जनाइकटन् चुरिया फोर फोर सैल डग्गर चुरियक् टुक्रा गिरैटी जाइठ ।

छेदाबृख बल्टुनके जागठ ते कठुवक् सिहरन ढैके सुतल चाल पाइठ । एहोर ओहोर चिटाइठ किहु नै देखठ । बरा दुःख लग्ठिस । अक्केली चलदेहठ डगरी डगरी खोज्टी । डगरीमे हँथियक पैला देखट् । चुरियक टुक्रा देखथ् । छेदावृख जान लेहठ पक्का मोर बाबा लैगैल हुइ कहिके । नै ते यी बनुवाँमे कोइफें सिकार खेले नै आइठ । ऊ नेंगट नेंगट अपन घर पुग्जाइठ । ओहाँ पुगठ ते कोइ नै चिन्ठिस् । तब छेदाबृख अपन घर कमैया लाग जाइठ । दिनभर ओहैं काम करत् । राजक् क कै दिन काम करी काम करट करट मिच्छा जाइठ् ।

एकदिन काम करट करट डट्करके बैठके सगत गाइलागठ- राजा पृथके बेटवा हुँ सड्डे छेदाबृख मोर नाउँ,
पाँच टका महिन्वाँरी इंटिया बोकी कन्धा दुरियाइ ।
तबजाके काम करुइयन सुन्ठै ते रज्वक् ठन् जाके कहौं-
लावा काम करुइया ते बरा मिठ महा सुग्घुरसे गीत गाइठ । रज्वा छेदा खहे कहठ
गा गा भैया मै फें सुनु तोर गित । गित नै जन्ठु ते का गाउँ छेदाबृख कहठ | कबु कबु मन लागल बेला गुन्गुनैहुँ । राजा पृथके बात काटे नै सेक्के छेदाबृख गित सुनाइठ-
राजा पृथके बेटवा हुँ सड्डे छेदावृख मोर नाउँ, पाँच टका महिन्वाँरी इंटिया बोकी कन्धा ढुरियाइ ।

राजा पृथ ते मोर नाउँ हो । छेदावृख ते मोर छावक् नाउँ हो । राजा सोंचत् छेदाबृखके घर छोरल बहुत बरस होगैल । पक्काफें मोरे छावा हो । जान लेहठ रानी सरङगा यत्रे जन्नी हुइस । मैं यके उनसे नन्ले रहुँ ।
तब राजा पृथ छेदावृख ओ रानी सरंगक् दुनु जन्हनके धुमधामसे भोज कैडेहठ । ओट्ठेसे सक्कु परिवार मजासे मिलके बैठे लहैं ।
हँसिया लेबो कि बेंट, टोहार ओ मोर सड्ड दिन हुई भेंट ।

लेखक हरचाली साहित्यिक त्रैमासिक र निसराउ साप्ताहिकका प्रकाशक/प्रधान सम्पादक हुन्। नोट : यो खिस्सा(बट्कोही) थारू आयोगको प्रकाशनबाट साभार गरिएको हो।




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