पत्र साहिट्य : थारु भासाके मानकटाके सवाल
कृष्णराज सर्वहारी।
प्रिय अंकर अन्जान भाइ
यि लिख्नौटि लिखेबेर एक महिना पहिले राट १० बजे ओर अपनेक लिखल अनलाइन चिठि मोर हाँठेम बा । प्रिन्ट करल चिठिके पोक्या बिठ्कोर्टु । अपने लिख्ले बटिः
सर्वहारी डाजि । मै इ थारु भासाके सुड्ढा सुड्ढिमे बहुट अनविग्य बाटु, मै अप्नेक लेखलहस् लेख्ना कर्टि आइल बाटु । मने मोर लेखाइ हे और अप्नेक लेखाइ हे बहुट मनै असुड्ढ लेख्ठि अप्नेहुँक्रे कहिके बहुट प्रटिकृया कर्ठै, इहे बिसयमे मोर बहुट मनैन से झगरा लराइ फे हुइल बा । मै कठुं, हम्रे अपन बोलाइके आढारमे ऐसिक लेख्ठि । जा बोल्ठि, उह लेख्ठि कहिके । मने मनै कहठै, अप्नेहुँक्रे असुड्ढ लेख्ठि । अपन लेखाइमे सुड्ढटा लन्बि कहिके । ओहेसे खास कर्के कैसिक लेख्लेसे मजा हुइ डाजि महिन सिखाइ ।
एकफेरा एक्ठो मनैयै से खुब झग्रा हुइल रहे । उ मनैयाँ कहे, टैं असुड्ढ लेख्ठे, मै जुन कहुँ मै असुड्ढ नाइ लेख्ठु । मै उहिन कहनु, यडि मै असुड्ढ लेख्ठुं कहले से इ सर्बहारी डाजि जो अस्टेहे लेख्ठै । का उ फे असुड्ढ लेख्ठै कहनु टे, अप्नेहे फे असुड्ढ लेख्ठै कहिके कहल । मै उहिन इ फे कहनु, उहाँ डाजिके लेखल थारु भासक् किटाब कच्छा ५ सम् पर्हाइ फे हुइठ । अप्ने ऐसिन सिच्छाविड मनैन्के लेखलहे असुड्ढ कहटि, ऐसिक कैसिक हुइ कहनु टे उ महिन हे खुब गरियाइल । कहल कि यडि टुहुरे ऐसिक असुड्ढ लेख्बो कहलेसे कलम चलैना छोरडेहो कहिके ढम्कि फे डेहल डाजि । टबमारे मै बहुट परिसान बाटु डाजि, खास कैख कैसिक लेख्ल से सुड्ढ मानजाइ ? महिन हे कुछ उपाय डि । कि अप्ने जस्टेक् लेख्ठि, ओस्टेक् सुड्ढ मानजाइठ ? पिलिज डाजि महिन हे जानकारी कराइ ।
अप्ने हे फे मनै बहुट प्रटिकृया कर्ठै कि सर्बहारी जि अप्ने असुड्ढ लेख्ठि कहिके । का अप्नेक् लेखाइमे ओइने खन्डन कर्ठै टे अप्ने हे इ बिसयमे कुछ टे महिन बोलेक परि कहना कौनो किसिमके भावना पैडा नै हुइठ ? मै टे अप्ने हे गुरु मन्ठुं डाजि, उहमारे अप्नेक रहेक् चिजके अनुसरन कर्ठु, मजा सिखैना नाइ सिखैना अप्नेक् हाँठेम बा । डाजि, समय मिलाके मोर पठाइल इ पत्र पहर्के जरुर मोर जिग्यासा मेटैबि कहना अप्ने से आसा लेले बाटु ।
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अंकर भाइ, अप्नेक जिग्यासा मेटाइ सेख्ठुँ कि नै ? महि पटा नै हो । हमार पुर्खा मुखग्रे काम चलैलाँ । लम्मा लम्मा गिट, बट्कुहि, मन्टर सब मनमने गुँठ्लाँ । ओइनहे लिखिटम नै चहलिन । पह्रे लिखे नैजान्के टे बरे बरे मौजा गँवा डवाँ डर्ला । हमार पुस्टा बल्टल पह्रे लिखे पैलि । नेपालि, अंग्रेजी, संस्कृत भासा पह्रे परल । थारु भासा टे कहाँ हो कहाँ ?
छयालिसके जनआन्डोलन पन्चायट ढालल् । बल्ले जनजाटिन्के भासा साहिट्य मौलैना अवस्ठा आइल । २०२८ सालमे निक्रल थारु भासाके पहिल पट्रिका गोचालीके सहकर्मिन पकरवा पाइल घटना अपनेन पटे हुइ । २०५४ साल भडो १ से रेडियो नेपालसे थारु भासम् समाचार आइ लागल । २०६४ साल कुँवार ८ से सरकारि गोरखापत्र डैनिकमे थारु भासक पेज हरेक महिना डुइ फेरा आइ लागल । २०५७ सालओर्से थारु भासक् कच्छा १ से ५ टक किटाब बन्ना सुरु हुइल, ओम्ने मै लगायट संघरियनके पस्ना बहल । थारु भासामे बाल साहिट्यके ‘ब’ नै रहल अवस्ठामे कुछ माहोल सिर्जल । मने थारु मस्टरवन्, अभिभावक, सिच्छाप्रेमि, साहिट्यकारलोग कान ओर्मा डेलाँ । सरकारके टे थारु किटाब लागु कर्ना वास्टे नै रहिस । ओम्ने हम्रहिन असुड्ढ लिख्ठाँ कहिके आरोप लगुइयन फेन कुछ नै उखरलाँ ।
मैगर गोचा, सुशील चौधरी जब २०७० सालमे नेपालगन्ज छोरके काठमाडौ उच्यइलाँ । थारु भासा साहिट्यके उट्ठानमे डुन्जाने गोचालि मिलाके नेंग्लि, बहुट खोल्हिखापट खन्लि । ओक्रे परिनाम थारु साहिट्यिक मेला सुरु हुइल । २०७३ बैसाख ३ ओ ४ गटे दाङमे हुइल मेलामे सुशीलजि थारु भासक् मानकटाके प्रस्न सिर्सकमे कार्यपत्र प्रस्टुट कर्ले रहिट । बुँडागट रुपमे उहाँक् प्रस्टावना असिन रहिनः
– निमांग थारु सब्ड लिखबेला स्वर वर्णके ऋ, व्यन्जन वर्नके ञ, ण, त, थ, द, ध, श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ नि लिख्ना । मुले, लेल्हारा (आगन्टुक) सब्डके लाग सक्कु स्वर वर्ण ओ व्यञ्जन वर्ण बेल्सना ।
– लेल्हारा सब्डहन जस्टक मुल भासाम लिखजाइठ ओस्टहक लिख्ना, मुले उच्चारण थारु निमांग ध्वनिम कर्ना । जस्ट कि थकाली, किताब, विदा, तराजु, धनी अस्टहक ।
– थारु निमांग सब्ड जस्टक बोल्जाइठ ओस्टक लिख्ना । जस्ट कि भोठ्लार, गोठ्लार, खोंट्लार, डोक्नार, ठुम्रार, अस्टहक ।
– नेपाली सब्डके र ओ हिन्दीके और के लाग ‘ओ’ लिख्ना । नेपाली भासाके तर हिन्दीके लेकिन सब्डके लाग ‘मुले÷मने’ लिख्ना ।
– आपन निमांग थारु भासक सब्ड रहटि रहटि आगन्टुक (लेल्हारा) सब्ड नि बेल्सना । थारु भासा लेखन ओ सम्पाडन करब्याला आपन ठे रहल सब्डकोस बेलसके भासिक एकरुपटा बनइना प्रयास कर्ना ।
– प्रकासन घर अर्ठाट संस्ठा ओ लेखक, सम्पाडकहुक्र आपन सैलि पोस्टा बनैना । उह सैलि पोस्टा छपाक प्रचार प्रसार कर्ना ।
– थारु भासाम सिच्छा ओ सरकारि कामकाजके भासाके रुपम बेल्सक लाग विसेष भासिक अभियान चलैना । भासा ओ साहिट्यकके विकासके लाग मिल्क अभियान चलैना । सामुहिक लेखन अभ्यास कर्ना । रास्ट्रिय, प्राडेसिक ओ स्ठानिय टहम भासा बखेरि ओ कचेह्रि कर्ना ।
– ढेरनक साहिट्य लिखगिल ओ लेख्य अभ्यास हुइलक भासिक समुहम बेलस गैलक सझिया सब्ड, वाक्य, अनुच्छेड ओ आख्यानहन आढार बनैना ।
– सहजिल ओ लिरौसि जनबोलि ओ भासाहन मानकटाके आढार बनैना । अस्टक सिस्ट भाव ओ अर्ठ डेना सब्ड बेल्सना भासाहन मान्यटा डेना । सक्कु थारु भासिकाम रलक मौलार ओ चम्पन सब्ड स्याकटसम् बेल्सना ।
– मेरमेरिक भासिक समुह सामाजिक सम्बन्ढ बह्राक एकापसके भासिक अभ्यास सिख्ना ओ सिखैना कामहन अभियानके रुपम लैजैना । फरक भासिक समुहके भासि ओ कवि, लेखक, साहिट्यकारहुकहन् क विच सुसम्बन्ध ओ सम्मान संस्कृटिके विकास कर्ना ।
अंकर भाइ, यि उप्रक प्रस्टावना सुशील गोचक् हो । अप्नेन उहाँक् प्रस्टावनाले ढेर बाटके उट्टर पाइल हस लागल हुइ । हम्रे अप्ने किल रचना नै कैके सामुहिक लेखनके अभियानमे बटि । मै सुशीलजिके बाटसे ढेर सहमट रहुँ । मने पाठ्यक्रम विकास केन्द्र लगायटके सहकार्यमे इजिपिआरसे २०७२ भडोमे राना थारुके १ से ३ कच्छाके पोस्टा ललितपुरके सानेपामे लिखेबेर (कैयोफेरा कैके ५० डिन) ओ २०७३ साउनके पहिल अठ्वार आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानके आयोजनामे ३ डिने ‘डंगौरा थारु वर्ण निर्धारण’ गोस्ठिमे सहभागिटाके बाड मोर लिखाइ पुरा बडलल् बा । भासाविड प्राडा माधव प्रसाद पोखरेल, त्रिविके भासा विग्यानके पहिलक् प्रमुख दानराज रेग्मी उहाँलोगनके चेला पदम राइ, तेजमाया राइके प्रसिच्छनसे हम्रे जस्टे बोल्ठि, ओस्टे बोल्ना चाहि कना अभियानमे बटुँ मैं । ‘डंगौरा थारु वर्ण निर्धारण’ गोस्ठिमे प्रसिच्छकलोगनके बैग्यानिक टबरले पटा लगाइल अन्सार हम्रे कुछ बाटमे सहमट हुइल रहि । जस्टेः १) ञ, ण, त, थ, द, ध, श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ नै लिख्ना ।
२) सक्कु अच्छर ह्रस्व लिख्ना ।
३) मनै, स्ठानके नाउँ जस्टे बेलस जैटि आइल बा, ओस्टक लिख्ना ।
अंकर भाइ, खास इहे टिन बुँडाहे पछ्यइटि मोर लेखन आगे बह्रल बा । यम्ने गोचा छविलाल कोपिला, संस्कृटिविड अशोक थारु, साहिट्यकार सोम डेमनडौरा, सुशील चौधरी लगायट संघरियन साठ डेटि बटाँ ।
काठमाडौसे मोर सम्पाडनमे निकरना बिहान, गोरखापत्रके थारु पेजमे इहे सैलि बेलसगैल बा । कोपिलाजि लावा डग्गर पट्रिकामे इहे सैलि अप्नैले बटाँ । मोर गइल बरस निक्रल ‘लाल केरनि’ उपन्यास, इ बरस मानबहादुर पन्नाके सहकार्यमे निक्रल हाँस्यव्यंग्य संग्रह ‘एकठो गोरुवक् बट्कुहि’ संग्रहमे फेन इहे सैलि बा । महि आज्कल जे अपन पोस्टा सम्पाडनके लग पठाइटा, ओकर पोस्टाके सम्पाडन फेन उप्रक ३ बुँडे सुत्र हो । महि त्र के सटहा ट्र लिख्ना अन्खोहर लागल ओरसे उ भर छोरे नै सेक्ले हुँ । मने मोर बडलल् लिखाइ बहुट जन्हन अन्खोहर लग्ठिन ।
हम्रे थारु भासाके मानक सैलि बनैना अभियानमे बटि । इ अभियान कोइ टे चलैना रहे । मने अचम्म यि लागठ कि जे जिन्गिम एक लाइन, एक टुक्रा थारु भासा लिख्ले नै हो, थारु भासा साहिट्यके संरच्छनमे एक डाना योगडान डेले नै हो, उहे मनै टुहरे भासा असुड्ढ लिख्ठो । टुहरे लिखक छोर्डेहो कहिके ढम्कि डेहठ । आनक ढम्किसे हमार कलम नै रुकि । जस्टे कुक्कुर भुँख्लेसे हँठियक सवारि नै रुकठ । ओस्टक थारु भासाहे मानक सैलि बनैना हमार अभियान नै रुकि । यि ढिल हुइलेसे फेन निकास पाइ ।
अंकर भाइ, आइ जे जे थारु सब्ड लिखिट रुपमे बेल्सठि । बहस करि एक एक सब्डके । कौन सब्ड कसिक लिख्ना हो ? महि अपनेक जिल्ला कैलालीमे बरा पहुना मान्के ब्याज बनाइबेर ३ ठाउँमे भारि जनैना अलग अलग सब्ड लिखगैल रहे । बर्का, बरका ओ बड्का ? आब हम्रे का बेल्सना ? असिन मिहिन चिजमे बहस चलाइ ।
पहुरा डैनिकमे थारु भासाहे मानक सैलि बनैना सवालमे विश्वराज पछलडंग्या ओ ओमप्रकाश गोंइजिहारके सिरिखंलाबड्ढ बहस महि पटा बा । बेक्टिगट टहमे बहस उट्रल ओर्से टाट्कालिन सम्पाडक लक्की चौधरीहे उ बहस रोके परल रहिन । महि लागठ, सिर्जनाट्मक बहस जरुरि बा । जौन फेन जुर्मुराइटा । लकिन कोइ मोर फेसबुकमे लिखल थारु भासाके स्टेटसके २÷४ लाइन हेर्के टोर लिखल नै मिलल कहठ कलेसे सक्हुन फेसबुकमे उट्टर डेना ब्यर्ठके समय हमार ठेन नैहो । हम्रे त्रिविके भासाविडलोगनके डेहल आढारहे मान्के आगे चलल बटि ? जे हमार लिखाइके बिरोढ करटा, उहाँ लोगनके विरोढके आढार का ?
समाज नैपचाइल कलेसे उ सब्डहे जवर्जस्टि पेलके लैजैना कर्रा बा । मने जब भासाविडलोग जो टुहिनके उच्चारन अन्सार लिखाइ यि ठिक बा कना सिफारिस करल कलेसे हम्रे उ सैलि मनन कर्ना कि नै कर्ना ? कि जिन्गिभर नेपालि भासाके लिख्नौटिके सैलिके गुलामि किल कर्ना ? हमार ठर थारु चौधरी सब्ड स्ठापिट हो सेकल, जबकि हम्रे ठारु, चौढरि उच्चारन कर्ठि । उहेसे स्ठापिट हुइल नाउँ, गाउँ बाहेक आउर जम्मे सब्डहे जस्टे बोल्ठि, ओस्टे लिख्ना अभियान चलैलक हो ।
मै आजकल अन्नपूर्ण पोष्टमे फिचर पेजके कपि एडिटर बटुँ । मदन पुरस्कार विजेटालोगन्के लेखके सम्पाडन कर्ठु । ओहेसे साहिट्यके विड्यार्ठि कौन सुड्ढ, कौन असुड्ढ महि मजासे पटा बा । सख्या नाचके गिटके विसयमे मोर पिएचडि फेन ओराइटा । कोइ कोइ कहठ, सर्वहारी पिएचडि कैके बौरागैल, सब थारु सब्द असुड्ढ पारडेहल । महि लागठ, भासिक सुड्ढटाके लग कोइ टे बौरैहि परि । हम्रे अपन जाट थारु बाहेक पुरुस जनैना सब्डहे फेन ‘थारु’ कहठि । मने खासमे हमार उच्चारन ठारु हो । ओहेसे ‘थारु’ ओ ‘ठारु’के भिन्नटा छुट्यइना डिन आ सेकल । हो, थारु भासाके मानकटाके लग जरुर मै बिग्रल, बंगहा, बौराहा ठारु ।
इहे १६ कुँवारमे प्रनव आकाश सख्या÷सखिया ओ हिट्वा÷हिटुवा सब्डके मौलिकटा केरैटि फेसबुकमे लिख्ले बटाँ, ‘भाषा बिगार्ने भनेकै पढेलेखेको मान्छेले हो ।’ १० बर्से जनयुड्ढले क्रमभंग होके जस्टक आब डेस विकासमे बा । थारु भासा फेन आब् क्रमभंग होके विकास हुइ । उ डस नाहि, बिसौ बरस लागे सेकठ । नेपालि भासाके मानकटाके सवालमे टे भासाविडलोग अभिन डब्निभिराउ खेल्टि बटा कलेसे हमार थारु भासिक बहसके कब्डि सुरु हुइलमे चिन्टा माने पर्ना कोइ बाट नैहो । गोरखापत्रमे आआपन पेज सुरु हुइलक बाड मगर, तामाङ, धिमाल, उँराव, राजबंशी, माझी लगायट टमाम भासाप्रेमिन मानकटाक अभ्यासमे लागल बटाँ । डेसके चौठा बरा भासा थारुके मानकटाके लग अभियान ढिल हुइल बा कना महि लागठ । ढान बैठौनिमे लेवा कैके लुर नैमिलाइट सम, हेंगा (राना थारु भासामे पटेला) नैलगाइट सम माटि ठेप्रार रहठ । अंकर, प्रनव भाइलोग आब थारु भासाके एक एक सब्डके हेंगा लगाके समठुर बनैना काम अपने हस युवनके । छयालिस सालसे बिहान पट्रिकम पहिला रचना छाप्के थारु साहिट्यमे पैला सारल मैं, २०५४ सालसे उहे बिहान पट्रिकाके सम्पाडन करट करट आब मिच्छावन लागठ । डटकहुर लागठ । आब महि सम्ठाइ डि । युवा लोग आगे बह्रि, बुह्रवन गल्टि करटो कना आढार सहिट चुनौटि डि ।
ओ, अन्टमे यि लिख्नौटि असौंक् विहान पट्रिका २०७५ मे पह्रके संघरिया गोविन्द चौधरी इन्बक्समे सन्डेस पठैलाँ, ‘सर्वहारीजि, थारु भासाके मानकटा अपनिक लेख मजा लागल । अंकुरजिहे डेहल सन्डेस महिहे डेहल हस लागल । मै फेन अलमलाइल रहुुँ । आबसे अपनिक डेखाइल डग्गरमे नेग्ना कोसिस करम ।’
गोविन्दहस संघरियन बुझ्टि जैहि कलेसे थारु भासाके मानकटाके घाना हालि निख्रि कना लागठ ।
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