डस्यामे नैआइठुँ डाई [कविता]
कृष्णराज सर्वहारी।
आइठुइ छावा डस्यामे
खुशीक् खबर लेके
आँख विछाके हेरठुइबो
मोर डाई ।
मने टोहार अस्रामे
टाटुल पानी डारटुँ मै
अप्की डस्यामे
कानेम जेउरा घाले
आइ नै सेक्ठुँ मोर डाई ।
अप्की राजधानी उच्यइनासे पहिले
कले रहो
आब टे टोर बाबा फे बिट्गैला
यी घरक ढुरखम्बा टही हुँइस् छावा ।
छोट बर काम खोजिस् ।
टुही पह्राइ खर्च
डेहे नै सकेम आब्
यी घरक जिम्मेवारी
टोर हाँठेम बा ।
टोहार एक एक वचन
मोर कानेम
अभिन गुन्जटि बा
मने डिग्री पासके
सर्टिफिकेट लेके
राजधानीके गल्ली गल्ली
कुक्कुर भुँकैटी बटुँ
हाँठ लागल सुन्य
टोहार लाग
एक पट्टा टिक्ली लेना
औकाट फेन नै हो मोर
ओहेसे मोर डाई
टोहार हाँठसे घेँचाभर
बेबरीक् बास लेना
भाग्य असौँ नै हो मोर
छोट बर काम मिलि टे
हाली अइम पहुरा लेके
घरक डुह्री डाबे
अपन आँस बँचाके ढरहो डाई
टोहार आँसके कौनो मोल नै हो
मै सब चिज किने सेकम
मने
टोहार आँसके
मोल टिरे नै सेकम
टिर नै सेकम ।।
हालः कीर्तिपुर, काठमाडौं
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