मातृभाषा कविता महोत्सव मनागैल
पिँजरा मनिक चिरैहस
बिल्कुल बाँधल बटुँ मै
जहाँ मोर पीडा
मै बाहेक कोइ नै जानठ
सामान हस बिकल टुँ
यहाँ मोर कौनो मोल नै हो
उहे ढरियार बोली
जौन मोर कानेम आके
झापर मारठ
“हली उठ्,
सेट्टीम घीचे पैबे की का?”
उप्रक कविताके अंश हो, भूमिका चौधरीके मै एक कम्लहि्रया शीर्षकके कविता। उहाँ मातृभाषा कविता महोत्सव २०१६ मे प्रज्ञा भवनमे आपन कविता बाचन कर्ली। नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानके आयोजनामे केगैल महोत्सवमे अटवारके उहाँ लगायत ५३ भाषाके ५३ कविलोग आआपन मातृभाषाके कविता बाचन कर्ला।
उ अवसरमे १० जनजातिके मेरमेरीक झाँकी फेन प्रदर्शन कैगैल रहे। नन्दुराज चौधरीके अगुवाइमे चम्पन सांंस्कृतिक समूह थारु झाँकीके साथसाथे लट्ठी नाच फेन डेखेलै रहे। कार्यक्रमके बर्का पहुनी राष्ट्रपति विद्यादेवी भण्डारी कहली– लावा संविधानमे भाषा आयोगके फेन व्यवस्था कैगैलक ओर्से सरकारी तहसे भाषा संरक्षणके प्रयास फेन जरुर हुइ।
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानके पूर्व कुलपति बैरागी काइला आपन पालामे ५ बरससे पहिले मातृभाषा कविता महोत्सव शुरु हुइलक सम्झटी इही निरन्तरता डेहे पर्ना बा कहलाँ। प्रतिष्ठानके मातृभाषा विभाग प्रमुख श्रवण मुकारुङ नेपाल बिबिध भाषाभाषीके देश रहलओर्से यी फूलरियामे सबजाने बरोबर फूले पाइपर्ना बटैलाँ। सोम्बार मातृभाषाबारे बिबिध कार्यपत्र प्रस्तुती बा। डा नवराज लम्सालके कविताको इन्द्रेणीमा संस्थागत उज्यालो शीर्षकके कार्यपत्रमे साहित्यकार कृष्णराज सर्वहारी टिप्पणी कर्टी बटाँ।
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