लावा बरस, लावा उमंग (थारु भाषा)
कृष्णराज सर्वहारी– लावा शब्द जो सुन्टी सोहावन। लावा दुल्हा दुल्हनीयनक् अपन भाउ रहठ्। लर्कापर्का लावा जरावर भेटैठाँ टे भुँख प्यास फेन विस्रा डर्ठा। फिलिम हेर्ना बान परल मनैन्के लावा फिलिम लग्टी कि हलओर गोर उठ् जैठिन्। थारू समाजमे कौनो उब्जनी हुइठ टे पहिले डेउटन् चह्रा जाइठ। ओ, मंगौटा कैजाइठ– भले भले टैँ लावा, मै पुरान। लावा लावा लग्वाइस, पुरान चिरान खवाइस। पुर्खन्के यी कहकुट मे बराबर दम बा। पुरान चिरान खवाइस कलक् हमार घरेम अन्नके भण्डार कबु ना टुटे। गरज परल बेलम् पुरान राईरब्बी बेंच्के लावा लावा घाले मिले कलक हो। ओहेसे का लावा, का पुरान समय अनुसार लावा पुरान डुनुक् ओत्रे महत्व बा।
स्कुलीम पहु्रइया कौनो लावा मस्टरवा आइ कलेसे विद्यार्थीन्से दुई मेरीक प्रतिक्रिया आइठ । पहिला, यी लावा मस्टरवा मजासे पह्राइठ कना। शुरुमे लावा मस्टरवा मजेसे पह्राई, मने ढिरे ढिरे ढंगरैटी जाई। ओक्रो पह्राइके शैली कामचलाउ हुइसेक्ठिस। डुस्रा यी प्रतिक्रिया कि मस्टरवा एक मजासे नै पह्राइठ। मने पह्रैटी, बान पर्टी जैना क्रममे लावामे नै मजासे पहु्रइया मस्टरवा बादमे सिपार हो जाइठ। उहे विद्यार्थीन्के प्यारा हुइठ। लावामे मजासे पहु्रइया मस्टरवा बादमे ढंग्राके बेकार हो जाइठ।
लावा बरस २०७१ साल हमार घर अंगनम् डुह्री डाब सेक्ले बा। लावा–पुरानके बात उहे प्रसंगमे अइलक हो। बरसके पैल्हा दिन सबके मनेम उमंग छाईल रहठ। छोट–छोट खुर्बुस्नी लर्कासे लेके ठँरिया बठिन्या, मस्टरवा, किसन्वा, भन्सरिया अड्रीक अड्रीक चुक्की गाउँक बाहेर, बन बनेरमे डेख्बी। सक्हुन् उलरट, कुदगट डेख्बी। चुक्कीम् सामेल नै हुइल मनैन् चुक्चुकाइट सुन्बी– महुँ कौनो चुक्कीम् मिल्जैना हरे। बरी सुनसान लागटा।
असिक लावा बरसहे सबजाने अपन तरीकासे स्वागत कर्ठा, उहीहे उक्वार भेट करठाँ। गर्मी मौसममे ढेर कचरपचर खैलेसे काल्ह पेट गरबर जरुर हुइ कैहके जन्टी जन्टी ठुँस ठुँस खैठाँ। बन्वम् खैलक् चुक्कीक् मर्जाड नै पुग्ठिन्। घर–घर आके नम्बर लगाइ लग्ठाँ। अभिन कौनो समूह डोसर रोज उब्रल टुब्रल कैहके छुट्की चुक्की बनाई भिर पर्ठा। बस् हेर्बी, चुक्की खाके लावा बरसके दिन शुरुवात कैलक मनै बरस भर कौनो ना कौनो बहाना चुक्की खैटीक् खैटी।
गैल बरस मै का का कर्लु, अइना बरस का कैना चाही? थारू समुदायमे यी सवालमे खासे कौनो चिन्तन मनन नै डेख्जाइठ। गाउँ गाउँमे बचतके लहर चलल बा। यम्मे दिदी बाबुनक\ उत्साहजनक उपस्थिति बा, मने ओइने टिर्ना कर्रा परी कैहेके रिन लेहक् डरैठाँ। छोट–छोट उद्यम व्यवसाय कैके असौँ अत्रा बचत करम, डोसर साल उ रकमले असिन लावा काम करम कना योजना नै रठिन। बस सालमे एक जोर जरावर लेहे पुग्जाए, बरस भर खाए पुग्जाए। ओत्रेमे ना सुर ना चिन्ता, हँसी खुसी जिन्गी बिटैठाँ। यदि कौनो कर्रा बेराम परगैलेसे भारी रकमके जुगार नै रठिन्। बस् उहे हो जात्तिसे मुरै लेहे जाइ परजैठिन्।
गाउँक् साधारण किसान्के बात का लेहे। थारू समुदायसे सबसे ढेर सरकारी जागीरमे मस्टरवन् जो हुइही। ऊ फेन अपवादबाहेक सबके घर पाई जाग्री रठिन। मने कमाहीले घर ठह्रओइना बाहेक समाज उत्थानके चिन्तन कर्ना ओइठेन बिर्कुल फूर्सद नै रठिन्। यदि हमार भाषा हेरा जाई टे, हमार संस्कृति, ज्ञान गुनके बात हेरा जाई कना एक प्रतिशत फेन चिन्ता नै हुइन्। रटिन कलेसे तयार हुइल थारू किताब लागु करैनामे अभिभावक् लोगन् मातृभाषा शिक्षाके महत्व बुझैटी अभियानमे का जे नै लग्टाँ?
लावा बरसके संघारमे २०७० फागुन १८ गते लावा डग्गर थारू त्रैमासिक देउखर लमहीमे अपन पाँचौ वार्षिकोत्सव मनाइल। वार्षिकोत्सव मे तीनठो स्रष्टालोगन सम्मान, बुहभाषिक कविता वाचन ओ थारू भाषम् लर्कापर्कन लग् थारू कविता प्रतियोगिताके फेन आयोजना कैगैल रहे। मही कार्यक्रमके सब्से सुन्दर पक्ष थारू कविता प्रतियोगितामे गैर थारूभाषी भैया बाबुन्के सहभागिता लागल। ढेर बाबु भैयन्के कवितामे आपन भाषा, संस्कृति हेरैटी गैलक चिन्तन रहे।
प्रतियोगितामे गैरथारू भैया पैल्हा अइलाँ। आव हेरी तमाशा, अपने थारू भाषक् चिन्तनमे गैर थारू हमरिहीन जिटे लग्लाँ। हमे्र जुन निंडैलक भेख ढैके सुटल बटी। निंडाइल मनैन् जगाइ सेक्जाइठ, मने निंडैलक भेख ढरुइयन् कसिक जगैना हो? मही यी लिख्नौटीमे कवि भाई सोम डेमनडौराके अइ थारू टुँ कहाँ बाटो? सबजाने अपन हिस्सा अगोरे लग्लाँ कना पंक्ति याद आइल।
उ कार्यक्रममे वर्का पहुनाईके मन्तव्यमे मोर सल्लाह रहे– लावा डग्गरके हर्ताकर्ता छविलाल कोपिलासे। कि लावा डग्गरके वार्षिकोत्सव माघी डिवानीक् अवसरमे अइना सालसे मनाइ परल। का करे कि थारून्के लावा बरस माघ १ गते जो हो, जिही सरकार मान्यता फे डे सेकल। हम्रे शहरमे माघी मनैनासे गाउँहे चैनार कराई आई। कोपिलाजी यी सल्लाह मन्ठाँ कि नै मन्ठाँ? पटा नै हो। मने आजुसे चिन्तन कर्ना जरुरी बा की थारू समुदाय लावा बरस वैशाख १ गते या जनवरी १ मे राहारंगित कर्नासे अपन मौलिक माघ १ हे, माघी डिवानीहे लावा बरसके फुन्ना लगैना चाही। लावा बरसके अवसरमे सब्जे लावा चिन्तन कर्ना जरुरी बा।
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