चारठो मुक्तक
निरंकुश राजतन्त्रहे बगाके आइल लोकतन्त्र
शोषण ओ दमनहे भगाके आइल लोकतन्त्र
अरे देश खउइया नेतौ आब खेल्वारे नसम्झो,
नारा लगाके जनतन् जगाके आइल लोकतन्त्र।
१
. कुर्सीक् लग किल लरके देश नै बनी
विदेशीन् के भरमे परके देश नै बनी
सुनी नेता जी, आई हाँठमे हाँठ मिलाई,
अपन लग किल मरके देश नै बनी।
२
आजकाल्ह भोजम् डोला डोली हेरागिल
डिस्को भाँगरामे पुर्खन्के बोली हेरागिल
कहाँ गिल हमार संस्कृति ओ पहिचान?
दिदी बाबुन्के लेहँगा चोली हेरागिल।
३
अपन जिन्गीहे खिडोरके हेर्नु
चिर्राइल रहे बिडोरके हेर्नु
सुखके टे नावै नै, दुःखे–दुःख बिल्गल
रह्वास नैहुइल डिडोरके हेर्नु।
४
सत्यनारायण दहित
हसुलिया–८, मनाउँ, कैलाली
गजल
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